स्वामी विवेकानंद एक महान भारतीय दार्शनिक एवं हिंदू सन्यासी थे, स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व भारत की ओर से किया था।
भारत का अध्यात्म से परिपूर्ण वेदांत दर्शन पूरे अमेरिका और यूरोप के हरेक देश में स्वामी विवेकानंद के विवेचनात्मक और विस्तृत विचार व्याख्यान के माध्यम से फैला उनके आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस थे तथा स्वामी रामकृष्ण परमहंस से संदर्भित रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी उनके द्वारा की गई।
उन्हें 1893 के शिकागो सम्मेलन में वक्तव्य का 2 मिनट का अवसर दिया गया जिसमें उनके भाषण का संबोधन “मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों “ के साथ करने के लिए जाना जाता है उनके प्रथम वाक्य ने हीं सबका मन मोह लिया।
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स्वामी विवेकानंद बायोग्राफी
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम | नरेंद्रनाथ दत्त |
जन्म | 12 जनवरी 1863 (कलकत्ता) |
मृत्यु | 4 जुलाई 1902 ( उम्र -39) , बेल्लूर मठ बंगाल रियासत ब्रिटिश राज (अब बेलूर पश्चिम बंगाल में हैं) |
पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त |
माता का नाम | भुनेश्वरी देवी |
भाई | भूपेन्द्रनाथ दत्त और महेंद्र नाथ दत्त |
बहन | स्वर्णमयी देवी |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
गुरु | रामकृष्ण परमहंस |
शिक्षा | कलकत्ता मेट्रोपोलिटन स्कूल और प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता |
स्वामी विवेकानंद के 9 अनमोल वचन
- उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
- सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
- तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हे सब कुछ खुद अंदर से सीखना है, आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही है।
- ख़ुद को कमज़ोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
- किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए-आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
- ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आंखों पर हांथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है।
- उस व्यक्ति ने अमरत्व हासिल क्र लिया है, जो वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
- आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारी है। वो हम ही हैं, जो अपनी आखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं की कितना अन्धकार है।
- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहां हम खुद को मज़बूत बनाने के लिए आते हैं।
- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।
- दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं।
स्वामी विवेकानंद का प्रारम्भिक जीवन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन 1863 ( विद्वानों के अनुसार मकर संक्रांति संवत 1920 ) को कोलकाता में कायस्थ परिवार में हुआ था।
उनके घर वालों ने बचपन का नाम वीरेश्वर रखा किंतु उनका औपचारिक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था पिता श्री विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे जो की संस्कृत और फारसी के विद्वान थे।
उनके नाना का नाम श्री नंदलाल बसु था। विवेकानंद जी ने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिए और एक साधु बन गए उनकी माता जी का नाम श्रीमती भुनेश्वरी देवी, जो धार्मिक विचारों की महिला थी।
उनका अधिकांश समय भगवान की पूजा अर्चना में व्यतीत होता था और वह भगवान शिव की पुजारिन थी माता-पिता का धार्मिक होना स्वामी विवेकानंद की प्रगति शील तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच व व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की।
बचपन से ही विवेकानंद जी कुशाग्र बुद्धि एवं नटखट भी थे। वह बच्चों के साथ शरारत करते थे और अध्यापकों के साथ भी समय मिलने पर शरारत करते थे।
उनके घर में नियमानुसार रोज प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती थी, उनकी माता भुनेश्वरी देवी, पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौकीन थी। बहुत से कथावाचक इनके घर में आते जाते रहते थे जिससे बालक नरेंद्र नाथ दत्तजी का स्वभाव भी चारों ओर से धार्मिक प्रवृत्ति का हो जाता था।
उनके घर में नित्य प्रति -दिन कथा वाचन भजन कीर्तन होता रहता था इसलिए बचपन से ही वह धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव में गहरे होते चले गए।
माता पिता के संस्कारों एवं धार्मिक वातावरण के कारण बचपन से ही ईश्वर को जानने की इच्छा उनके मन में होता रहता था।
ईश्वर के बारे में जानने की उसकी उत्सुकता इतनी हैरानीयत भरी होती थी कि बड़े-बड़े पंडित विद्वान उनके प्रश्न से भाऊचक्के रह जाते थे।
शिक्षा: नरेंद्र नाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलियन संस्थान में दाखिला 1871 मे आठ साल की उम्र मे लिया, जहां वे स्कूल गए , 1877 में उनका परिवार रायपुर चले गया।
कोलकाता में अपने परिवार की वापसी के बाद नरेंद्र नाथ जी ऐसे छात्र थे जिन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में first division marks प्राप्त किये।
वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य विषयों के एक उत्साही पाठक थे।
इनकी वेद, उपनिषद, भगवत-गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिंदू शास्त्रों में गहन रुचि थी।
नरेंद्र जी को भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था और वे नियमित शारीरिक व्यायाम व खेलकूद में भाग लेते थे।
नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिट्यूशन ( अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज ) में किया।
1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की और1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।
नरेंद्र ने डेविड ह्यूम , एमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिज, बारूक स्पिनोजा, जोर्ज डब्ल्यू एच हेजेल, ऑर्थर स्कूपईनहार, चार्ल्स डार्विन, जॉन स्टूअर्ट मिल के कामों का अध्ययन किया।
उन्होंने स्पेंसर की किताब एजुकेशन (1860) का बंगाली में अनुवाद किया। यह हरबर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी प्रभावित थे बंगाली साहित्य, संस्कृत ग्रंथों को इन्होंने सीखा, उसके अलावा पश्चिम दार्शनिकों के गहन अध्ययन किया।
प्रसिद्ध महासभा संस्था के प्रिंसिपल विलियम हेस्टी ने लिखा :- “नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला बालक एक भी कहीं नहीं देखा यहां तक कि जर्मन विश्वविद्यालय के दार्शनिक छात्र में भी नहीं।”
नरेंद्र नाथ जी को अनेक बार श्रुति धर ( विलक्षण स्मृति वाला एक व्यक्ति ) भी कहा गया है।
विवेकानंद जी में आध्यात्मिक शिक्षुता का विकास और ब्रह्मा समाज का प्रभाव
1880 मे नरेंद्र, रामकृष्ण के प्रभाव से ईसाई से हिंदू धर्म में परिवर्तित हुए तथा केशव चंद्र सेन की नव विधान में शामिल हुए |
नरेंद्र 1884 से पहले कुछ बिंदु पर, एक फ्री मासोनरी लार्ज और साधारण ब्रह्म समाज जो ब्रह्मा समाज का एक हिस्सा था और जो केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के कुशल नेतृत्व में था।
1881-1884 के दौरान ये सेंस बोर्ड ऑफ होप में भी सक्रिय योगदान रहे जो नशे करने वाले युवाओं को हतोत्साहित करता था।
नरेंद्र अध्यात्म की ओर रमे हुए थे वह अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित थे उन्होंने सीखा कि परमात्मा का अस्तित्व सारे जीवो में एक समान हैं इसलिए मानव जाति जो दूसरे जरूरतमंदों की सेवा करते हैं, अपनी सेवा के द्वारा परमात्मा की सेवा कर लेते हैं या की जा सकती है।
1870 से 1901 के बीच खेतड़ी रियासत के राजा अजित सिंह जो विवेकानंद के शिष्य थे उन्होंने नरेन्द्रनाथ का नाम स्वामी विवेकानंद सुझाया। विवेकानंद का अर्थ है विवेकपूर्ण ज्ञान का आनंद। इस आध्यात्मिक नाम को स्वामी जी द्वारा 31 मई 1893 को अपना लिया गया, जब वे शिकागो के लिए रवाना हुए।
विवेकानंद जी के परिवेश के कारण पश्चिमी आध्यात्मिकता का विकास भी हुआ लोग परिचित भी हुए, ब्रह्मा समाज जो कि निराकार ईश्वर पर विश्वास करता था तथा मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करता था नरेंद्र जी के विचारों ( विश्वासों ) को ब्रह्म समाज ने अपनाया और प्रभावित होते हुए सुव्यवस्थित, युक्तिसंगत, अद्वैतवाद, अवधारणाओं, वेदांत, धर्मशास्त्र और उपनिषदों के आधुनिक ढंग से एक चयनात्मक अध्ययन पर प्रोत्साहित किया।
रामकृष्ण की मृत्यु उपरांत विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थिति का प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया बाद में विश्व धर्म संसद भारत के प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर प्रस्थान किया।
विवेकानंद संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन सिद्धांत का प्रसार किया और कई निजी / सार्वजनिक स्थानों पर व्याख्यान का आयोजन भी किया विवेकानंद देश की सन्यासी एवं दार्शनिक के रूप में जाना जाता है |
वेकानंद के जन्म दिवस 12 जनवरी को वर्तमान भारतवर्ष में युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की कुछ शिक्षाप्रद कहानियाँ
- लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना
एक समय की बात है जब विवेकानंद सो रहे थे , तभी एक व्यक्ति आया जो बहुत दुखी लग रहा था और कहने लगा महराज मै जीवन मे बहुत मेहनत करता हूँ हर चीज खूब मन लगाकर करता हूँ, फिर भी आजतक मुझे सफलता नहीं मिल पाया।
विवेकानंद मुस्कुराते हुए बोला ठीक है, एक काम करो आप मेरे पालतू कुत्ता को घुमा कर ले आओ तब तक मैं समस्या का समाधान ढूंढता हूं, इतना सुनने के बाद वह व्यक्ति कुत्ता को घुमाने ले गया। तभी थोड़ी देर बाद वह वापस आया वह अपने आप में बिल्कुल शांत व कुत्ता हाफते हुए आया विवेकानंद बोले यह कुत्ता क्यों इतना हांफ रहा है, इसके साथ ऐसा क्या हो गया ?
वह आदमी कहने लगा महाराज मैं सीधा-सीधा चल रहा था, कुत्ता इधर-उधर ताकते हुए चल रहा था और जो भी देखता दौड़ते हुए उसके पीछे पड़ जाता था जिसके कारण वह थक गया है।
इस पर स्वामी विवेकानंद मुस्कुराते हुए बोला बस यही आपके प्रश्न का जवाब है जो आपको मिल गया इतने मे व्यक्ति बोला कैसे महराज ? स्वामी जी ने कहा सफलता की मंजिल तो अपने पास ही होती है मगर हम उसे आसानी से समझ नहीं पाते अनचाहे रास्तों पर भटक जाते हैं , इतने में वह आदमी समझ गया कि हमें सफल होना है तो अपनी मंजिल पर ध्यान देना आवश्यक है।
कहानी का सारांश:
स्वामी विवेकानंद जी के इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें जो भी बनना है जो भी करना है अपनी पूरी लगन , अथक प्रयास , मेहनत के साथ काम को अंजाम देना चाहिए दूसरों को देखकर वैसा ही करें उचित नहीं क्योंकि उनकी विचार, उद्देश्य अलग होते है इसलिए अगर सफल होना है तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- डर का सामना
एक बार स्वामी जी बाल्यावस्था में बनारस के दुर्गा मंदिर से पूजा करके निकल रहे थे तभी वहां मौजूद बंदरों ने उनका पीछा किया बंदर झुंड में थे, स्वामी जी पूरी तरह से डरे हुए थे बंदरों से सामना ना करके वह डर के मारे भाग रहा था।
बालक को भागता देख वहां मौजूद वृद्ध सन्यासी टोकते हुए कहा – अजी बंदरों के डर से भागने से वह आप पर और हावी होंगे इसलिए आप स्वयं उनका सामना करो, आगे बढ़ो तभी वह बंदर पीछे की ओर लौटेगा।
बालक वृद्ध सन्यासी के बातों को सुनकर बंदरों की ओर आगे बढ़ने लगा तब सभी बंदर पीछे की ओर मुड़कर भागने लगे इस घटना से स्वामी जी को अनुभव हुआ कि भयभीत होने से कुछ नहीं होने वाला परिस्थिति का सामना करना चाहिए
कहानी का सारांश:
यदि तुम किसी चीज से भयभीत हो , तो उससे भागो मत, पलटकर सामना करो।
- अपनी मातृभाषा पर गर्व करो
एक बार की बात है जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए थे उनके स्वागत के लिए अनेक लोग थे स्वामी जी को हेलो कहकर सम्बोधन करने लगे स्वामी जी इनके जवाब में नमस्ते कहा तब वहां मौजूद लोगों को लगा कि इन्हें अंग्रेजी नहीं आती तो उसमें से एक व्यक्ति ने उनसे पूछे कि आप कैसे हैं ?
स्वामी जी ने जवाब में कहां I am fine…thank you. लोग उनके जवाब सुनकर आश्चर्यचकित हो गए कि जब हम अंग्रेजी में बात करते हैं तो स्वामी जी हिंदी में जवाब देते हैं और हिंदी में पूछते हैं तो अंग्रेजी में जवाब देते हैं।
लोगों ने जानना चाहा कि स्वामी जी आप इस तरह का प्रत्युत्तर कैसे ? स्वामी जी ने कहा जब आप अपनी मां की सम्मान कर रहे थे तो मैं अपनी मां की सम्मान कर रहा था और आप मेरी मां के सम्मान करने लगे तो मैं आपकी मां का सम्मान करने लगा।
निष्कर्ष :- यदि किसी को अंग्रेजी बोलना नहीं आती तो उन्हें आत्मग्लानि नहीं करनी चाहिए क्योंकि हिंदी हमारी मातृ भाषा है जिस पर प्रत्येक व्यक्ति को गर्व करनी चाहिए।
- नारी का सम्मान
स्वामी विवेकानंद की ख्याति प्रायः पूरे विश्व में में फैली हुई थी। एक समय की बात है विवेकानंद समारोह के लिए विदेश गए थे। उनके समारोह में बहुत से विदेशी आए थे ! स्वामी द्वारा दी गई speech से एक विदेशी महिला बहुत ही effective हुँई।
विवेकानंद के पास आकर बोली मैं आपसे शादी करना चाहती हूं ताकि आपके जैसा ही मुझे गौरवशाली पुत्र की प्राप्ति हो इस पर स्वामी विवेकानंद जी बोले मैं एक सन्यासी हूं और भला एक सन्यासी शादी के बारे में कैसे सोच सकता है, अर्थात शादी कैसे कर सकता हूं?
यदि आप मुझे अपना पुत्र बनाना चाहती हो तो आप मुझे पुत्र के रूप में देख सकते हो जिससे कि मेरा सन्यास भी नहीं टूटेगा और आपको पुत्र की प्राप्ति भी हो जाएगी।
इतनी बातें सुनकर के वह विदेशी महिला विवेकानंद जी के चरणों में गिर पड़ी और रोने लगी कहने लगी कि आप धन्य हो ईश्वर के रूप हो अर्थात ईश्वर के समान है! जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते है।
कहानी से शिक्षा:
स्वामी विवेकानंद के इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें अपने कर्तव्य पर अडिग होना चाहिए सच्चा पुरुष वह होता है, जो हर परिस्थिति में नारी का सम्मान करें।
- कर्तव्य के प्रति सच्चा समर्पण
एक बार की बात है जब किसी शिष्य ने गुरुदेव की सेवा में घृणा का भाव दिखाते हुए पूरी निष्क्रियता के साथ अपनी नाक भौं सिकोड़ने लगे।
यह देखकर स्वामी विवेकानंद जी को गुस्सा आ गया। वे अपने गुरु भाई को शिक्षा का पाठ पढ़ाने के बारे में सोचा और उनको प्रत्येक वस्तुओं मे प्रेम की भावना दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास से रक्त कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे।
गुरु के प्रति अनन्य भक्ति एवं निष्ठा के कारण गुरु के शरीर एवं उनके दिव्यतम आदर्शों का उत्तम ढंग से सेवा कर पाए।
गुरुदेव को पूरी तरह से समझ सके तथा उनके स्वरूप में पूरी तरह विलीन हो गए और आगे चलकर वही बालक नरेंद्रनाथ पूरी विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिकता को फैलाया इस प्रकार उनकी अनन्य निष्ठा के कारण गुरु भक्ति, गुरु सेवा को पूरी संसार ने देखा और वह मिसाल बन गए।
अपने गुरुदेव की शरीर त्याग के समय उन्होंने अपने परिवार एवं कुटुंब की हालत तथा अपनी भोजन की व्यवस्था की चिंता ना करके वह सतगुरु सेवा में ही निरंतर संलग्न रहे।
विवेकानंद बड़े कल्पनाशील एवं स्वप्न दृष्टा थे। उन्होंने ऐसे समाज की कल्पना जिसमें जात पात से ऊपर धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य – मनुष्य में भेदभाव ना रहे, उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को भी इसी रूप में रखा। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी समता के सिद्धांतों का जो मिसाल विवेकानंद जी ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढा जा सके। युवाओं के प्रति विवेकानंद जी का बड़ी आशाएं थी। आज के युवकों के लिए इस ओजस्वी सन्यासी का जीवन एक आदर्श है।
स्वामी विवेकानंद का शिकागो सम्मेलन में भाषण
वैंकुवर(कनाडा) से होते हुए वे ट्रैन से शिकागो(अमेरिका) पहुंचे, 30 July 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में उनके ओजस्वी भाषण ने उन्हें अमेरिका व विश्व में बहुत प्रशिद्धि दिलवाया।
निचे हमने उनके लाइव भाषण का विडिओ, जो उन्होंने अंग्रेजी में दिया है और उसके निचे हमारे हिंदी पाठकों के लिए स्वामी जी के भाषण का हिंदी अनुवाद लिखा दिया है।
मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनो!
आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ लोगों का स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय प्रफुल्लित हो रहा है जो अवर्णीय हर्ष से पूर्ण है।
मैं आपको दुनिया के सबसे पौराणिक भिक्छुओ के तरफ से धन्यवाद देता हूं !आपको सभी धर्मों की जननी के तरफ से धन्यवाद देता हूं ! और सभी जाति संप्रदायों के लाखों करोड़ों हिंदुओं के तरफ से धन्यवाद देता हूं ! मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि सहनशीलता का विचार पूरब दिशा से फैला है मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसमें सहनशीलता और सौहार्द का पाठ पढ़ाया है हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास नहीं करते है बल्कि मनुष्य के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं मुझे गर्व है कि मैं ऐसे देश से हूं जिसने इस धरती के सताए गए लोगों को शरण दी है मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि इजरायलो की शुद्धतम स्मृतियां बचा कर रखी है जिनके मंदिरों को रोमिनो ने तोड़फोड़ कर खंडहर बना दिया था|
और तब उन्होंने दक्षिण भारत की तरफ शरण ली मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने महान फारसी देशों के अवशेषों को शरण दी और अभी भी उन्हें बढ़ावा दे रहा है भाइयों मैं आपको ऐसे श्लोको की पंक्तियां सुनाना चाहता हूं जो मेरी स्मरण में है जिसे मैंने बचपन से ही संजो कर रखा हुँ |
ये यथा मां प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वतर्मानुवर्न्ते मनुष्याः पार्थ सर्वश:
अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है चाहे किसी प्रकार से हो मैं उसको प्राप्त होता हूं। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अंत में मेरी ही ओर आते हैं।
जो रोज करोड़ों व्यक्तियों द्वारा दोहराया जाता है, जिस तरह विभिन्न धाराओं की उत्पत्ति विभिन्न स्रोतों से होती है उसी प्रकार मनुष्य अलग-अलग मार्ग चुनता है देखने में भले ही अलग-अलग लगता है लेकिन जो रास्ते टेढ़े मेढ़े सीधे जैसे भी हो सब रास्ते भगवान तक ही जाते हैं जो कि आज तक के सबसे पवित्र सभाओं में से हैं जो गीता के बताए गए सिद्धांतों का अनुसरण कर रहे तथा जो भी मुझ तक आता है मैं उनको शरण प्रदान करता हूं सभी मनुष्य विभिन्न मार्गों पर संघर्ष कर रहे हैं जिसका अंत मुझमें है।
संप्रदायिकता कट्टरता इसके भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजे में जकड़ा हुआ है इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है कितनी बार यह धरती खून से लाल हुई है कितनी बार विनाश हुआ है और कितने देश नष्ट हुए हैं अगर यह भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इन सम्मेलन का संखनाद सभी हठधर्मिता हर तरह के क्लेश चाहे वह तलवार से हो या कलम से चाहे जो भी व्यक्ति लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं के बीच की दुर्भावनाओ का विनाश करेगा।
स्वामी विवेकानंद की महत्वपूर्ण भूमिकाएं व कार्य
- हिन्दू धर्म में जाग्रति
स्वामी जी ने हिंदू धर्म के अध्यात्म को पुनर्जन्म दिया हिंदू धर्म की श्रेष्ठता को स्थापित करके ईसाई और इस्लाम धर्म की आक्रमण से बचाया, पश्चिमी सभ्यता को ना मानकर प्राचीन धर्म में स्वीकारते हुए जागृति प्रदान करने का प्रयास किया।
- धर्म का वास्तविक अर्थ
स्वामी विवेकानंद ने ना केवल हिंदू धर्म को प्रेरणा प्रदान की बल्कि संपूर्ण संसार में अध्यात्म वाद को बढ़ावा दिया वे धर्म को सर्वोच्च मानते थे, धर्म पुस्तकों में नहीं हैं यह चीजें धर्म के सहायक हैं धर्म का सीधा अर्थ परोपकार को बढ़ावा देना व मानना था तथा ईश्वर पर विश्वास करते थे।
- मानव की अवधारणाएं
स्वामी जी ने शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि मानव की सही अवधारणाएं मानव की आंतरिक प्रगति है, जो उसे प्रसिद्धि दिलाती है यदि लोगों में रूढ़िवादी तथा अंधविश्वास की बढ़ोतरी हो जाएगी तो वास्तविक सोच विचार को आसानी से नहीं समझा जा सकता है इसलिए स्वामी जी ने फ्रोबेल के शिक्षा सिद्धांतों को अपनाया जिसमें फ्रोबेल ने बताया है कि लोगों को प्रकृतिवादी सोच को अपनाना चाहिए।
- राष्ट्रवाद का धार्मिक सिद्धांत
जिस प्रकार संगीत में एक प्रमुख स्तर होता है उसी प्रकार हर राष्ट्र के जीवन में एक प्रधान तत्व हुआ करता है अन्य सभी महत्वपूर्ण तत्व उसमे केंद्रित हुआ करते हैं।
भारत का तो महत्वपूर्ण तत्व है – धर्म
स्वामी जी की महत्वपूर्ण कृतियां
कर्मयोग पतंजलि के योग सूत्र सिटी का भारत और उसकी समस्याएं आधुनिक भारत जनता जनार्दन के प्रति हमारे कर्तव्य अधिकार वाद की बुराइयां जातिवाद का चक्र फ्रॉम कोलंबो to अल्मोड़ा आदि।
इस प्रकार विवेकानंद ने राष्ट्रवाद को नए स्वरूप में प्रस्तुत किया है – अध्यात्मिक व राष्ट्र की स्वतंत्रता को मुख्य मानते हुए राष्ट्र की कार्य व चिंतन पर पूरी गंभीरता के साथ धोखा किया है साथ ही सबसे महत्वपूर्ण देशवासियों की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त भी किया है।
उन्होंने देशवासियों से कहा…
निर्भीक बनो, साहसी बनो, इस बात पर गर्व करो कि तुम भारतीय हो उन्होंने इस बात का हवन किया कि मैं भारतीय हूं और प्रत्येक भारतीय मेरा भाई है भारतीय मेरा जीवन है भारत का कल्याण मेरा कल्याण है।
स्वामिक विवेकानंद के विचार
उनकी प्रतिभा सर्वतोमुुखी थी वह उनके मन में देश मे व्याप्त सामाजिक आर्थिक तथा नैतिक बुराइयों के प्रति सामाजिक आर्थिक तथा नैतिक बुराइयों के प्रति गहरी छटपटाहट थी सामाजिक आर्थिक तथा नैतिक बुराइयों के प्रति गहरी छटपटाहट थी |
जिस प्रकार लूथर और काल्विन के पश्चिमी यूरोप को ओजस्विता प्रदान करने की थी उसी प्रकार वही ओज और वैचारिक उच्चता दयानन्द और विवेकानंद ने भारतीय वातावरण के जनमानस में पैदा किया |
- स्वामी विवेकानंद के मुख्या विचार
“उठो जागो और तब तक न रुको जब तक कि अपने ध्येय की पूर्ति ना कर लो।”
* विवेकानंद का दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चिंतन।
* प्रधानता धर्म तथा दर्शन में रुचि।
* चिंतन का मूल वेदांत की शिक्षाएं वेदांत दर्शन की व्यापक रूप देने का प्रयास।
* अद्वैत वेदांत के संदेशवाहक तथा महान समन्वयवादी विचार।
* वेदांत के अनुसार एक ऐसे दर्शन का विकास करना चाहते थे जो समस्त संघर्षों को दूर करके चहुमुखी संपूर्णता को पहुंचाना चाहते थे।
- वेदांत का आधार
01. मानव की वास्तविक प्रकृति ईश्वरीय |
02.जीवन का लक्ष्य ईश्वरीय प्रकृति की अनुभूति |
03. समस्त धर्मों का मूल लक्ष्य समान है |
वेदांत दर्शन के अंतर्गत यह प्रतिपादन किया कि वह उस ईश्वर पर विश्वास नहीं करते थे जो मृत्यु के बाद स्वर्ग में सुख दे सकता है यदि तूम व्यक्त ईश्वर रूप अपने भाई की उपासना नहीं कर सकते तो अव्यक्त ईश्वर की उपासना कैसे कर सकते हो ? यह प्रश्न का विषय है |
स्वामी विवेकानंद से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर:
स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की?
स्वामी विवेकानंद का बचपन से ही रुझान आध्यात्म की ओर था, ईश्वर को जानने की जिज्ञासा ने उन्हें सांसारिक मोह से दूर कर दिया, इसलिए शादी के प्रस्ताव को नकारते रहे।
25 वर्ष की अवश्था में घर छोड़ दिया और 29 की अवस्था में संन्यास अपना लिया, इसलिए स्वामी विवेकानंद ने उम्र भर शादी नहीं किया।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा क्या है?
स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा वह प्रक्रिया जो उस पूर्णता को व्यक्त करता है, जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान हैं, जिससे चरित्र का निर्माण होता है, मन की शक्ति बढ़ती है, और बुद्धि तेज होती है।
विवेकानंद के अनुसार सबसे उपयोग शिक्षण विधि कौन सी है?
विवेकानंद के अनुसार, ज्ञान प्राप्त करने का सबसे उपयोगी शिक्षण विधि “एकाग्रता” है, व्यक्ति में जितना अधिक एकाग्रता होगा वह उतना ही अधिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
विवेकानंद के प्रिय शिष्य कौन थे?
स्वामी विवेकानंद अपने सभी शिष्यों को सामान रूप से देखा करते थे, किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे, परन्तु भगिनी निवेदिता जिनका मूल नाम ‘मार्गरेट एलिजाबेथ नोबुल’ था। वे एक अंग्रेज-आइरिश महिला थीं। वह सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षक एवं स्वामी विवेकानन्द की शिष्या थीं।
वह स्वामी जी के विचार से अत्यधित प्रभावित थी, उन्होंने विवेकानद के साथ अनेक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य किये, जिससे वह वामी विवेकानंद की प्रिय शिष्या मानी जाती है।
स्वामी विवेकानंद पढ़ाई कैसे करते थे?
ध्यान और ब्रह्मचर्य ने स्वामी विवेकानंद को विलक्षण बुद्धि एवं स्मरण शक्ति प्रदान किया, वे सैकड़ों पन्नों की किताबें कुछ ही घंटो में पढ़ लिया करते थे, उनके अनुसार कोई भी व्यक्ति इसका पालन करेगा तो वह अपनी सीखने की क्षमता को बढ़ा सकता है।
स्वामी विवेकानंद कितने घंटे सोते थे?
कहा जाता है की, स्वामी विवेकानंद दिन में लगभग 2 घंटा ही सोते थे व प्रत्येक चार घंटे के बाद 15 मिंट की झपकी लिया करते थे।
स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है?
1 May 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना, शिकागो महासम्मेलन में धर्म पर अद्वितीय भाषण, ब्रह्मचर्य, विलक्षण बुद्धि के धनि थे।
इसके अलावा वे एक महान दर्शनशास्त्री, समाजसुधारक व भारतीय पुर्जागरण के प्रणेता के रूप में स्थापित हैं, जिसके कारण, स्वामी विवेकानंद भारत व विश्व में काफी प्रसिद्ध हैं।
नोट :-
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